#पर्यवरण_दिवस
विकास की अंधी दौड़ और चकाचौंध के पीछे भागते भागते, अब समय मिलने पर ज़रा ठहर कर देखते हैं तो पाते हैं कि इस भौतिक विकास के पीछे हम कितनी बड़ी कीमत चुका रहे हैं!
पर्यावरण खतरे में है और उसके साथ हम भी और यह बात हम सभी भली-भांति जानते भी हैं! हरे-भरे वन खत्म करके हमने कंक्रीट के जंगल उगा दिए हैं, धरती का आँचल बिल्कुल सुखा दिया है, चिमनी से निकलने वाले कृत्रिम बादलों ने आकाश को पूरी तरह ढक लिया है और इसके साथ ही हम भी कृत्रिम होते जा रहे हैं, यह जानते हुए भी कि पर्यावरण ही हमारा जीवन है और शायद इसलिए ही पुरातन में भारत में कुछ ऐसी मजबूत परंपराओं की नींव रखी गई जिससे कि पर्यावरण का संरक्षण हो सके! जल जीव वनस्पति सभी का संरक्षण!
परंतु पश्चिमीकरण के अंधानुकरण में हम अपनी परंपराओं और उन नैतिक मूल्यों को भूलते जा रहे हैं, जिनके कारण भारत विश्व में गौरवशाली पहचान रखता है!
हालांकि पर्यावरण बचाओ पूरे विश्व का प्रयास है परंतु आज यहाँ उन भारतीय परंपराओं की बात करते हैं जिससे सदैव पर्यावरण की सुरक्षा होती है! भारत में मात्र हिन्दू ही नहीं वरन कई अन्य धर्म भी प्रकृति पूजन में विश्वास रखते हैं और इसी में निहित है प्रकृति की सुरक्षा! धरती पर्वत नदी पोखर पेड़ पौधे सूर्य चाँद तारे यानी ग्रहों के साथ-साथ उन तत्वों का पूजन होता है जिससे हमारा यह शरीर निर्मित हुआ है।
इतना ही नहीं प्रकृति के साथ एक भावनात्मक रिश्ता भी बनाया गया है! चंदा को मामा तो गंगा को माँ स्वरूप बताया गया है! प्रकृति के साथ संतुलन स्थापित हो सके इसके लिए हर उस वृक्ष का पूजन किया जाता है जो हमारे लिए बहुत महत्वपूर्ण है! अब जिसका पूजन करेंगे उसे भला नुकसान कैसे पहुंचाएंगे!
आँवला नवमी के दिन आँवला, वट व्रत के लिए बरगद तो चाहिए ही, वहीं हर शाम तुलसी पर दीपक जला कर घर में शुभता का प्रवेश भी कराना है! ये बातें छोटी है परंतु पर्यावरण संरक्षण में महती भूमिका निभाती हैं!
भारतीयता मात्र नागरिकता नहीं है अपितु एक खुशहाल जीवन जीने की पद्धति है जहाँ हम "जियो और जीने दो" के सिद्धांत पर जीते हैं! यही कारण है कि जानवरों से भी हमारा गहरा नाता है और जीवन की यह पद्धति ही हमें पर्यावरण के प्रति संवेदनशील भी बनाती है।
परंतु ना जाने क्यों भागमभाग की जिंदगी में यह संवेदनशीलता खोती जा रही है! छाया और प्राण वायु देने वाले वृक्ष काटकर हम घर में मनी प्लांट लगाकर पर्यावरण की सुरक्षा करना चाहते हैं!
यह तो स्वयं को देने वाली एक दिलासा मात्र ही है! पर्यावरण को बचाना है तो लौटना होगा अपनी वैज्ञानिक रहस्यों चमत्कारों वाली परंपराओं की ओर!
पहले ही बहुत देर हो चुकी है। इससे पहले कि अधिक देर हो जाये, आइये लौट चलते हैं प्रकृति की ओर!
©रंजना यादव
फोटो गूगल से साभार