कोटि कोटि आकुल हृदयों में
सुलग रही चिंगारी
अमर आग है अमर आग है अमर आग है
ओजवान कवि, जागरूक पत्रकार, प्रखर वक्ता के साथ साथ संवेदनशील कवि, भावुक इंसान और एक शानदार व्यक्तित्व के स्वामी, इतिहास पुरुष श्री अटल बिहारी बाजपेयी एक व्यक्ति नहीं अपितु एक विचार हैं और विचार कभी मरा नहीं करते। वे तो सदैव सत्य की भाँति जीवित रहते हैं और सूर्य की भाँति आने वाली पीढ़ियों को मार्गदर्शन देते हैं।
ओजस्वी वाणी और हृदय में राष्ट्रभक्ति लिए अटल बिहारी बाजपेयी ने सदैव अपनी बात को विनम्रतापूर्वक परंतु तार्किक ढंग से प्रस्तुत किया। आम जनमानस में, उनके वक्तव्यों के माध्यम से सदैव ही स्वाभाविक ऊर्जा व उत्साह का संचार हुआ है। उनकी कार्यकुशलता व ओजपूर्ण भाषण से प्रभावित हो, जवाहर लाल नेहरू ने कहा था कि यह युवा आने वाले समय में देश का प्रधानमंत्री बनेगा। आम आदमी हो अथवा प्रभावशाली व्यक्ति, दोनों ने ही अटल के अटल फैसलों को सराहा है। चाहे वह पोखरण परीक्षण कर दुनिया को यह बताना हो कि भारत भी परमाणु शक्ति प्राप्त राष्ट्र है अथवा पाकिस्तान से संबंध सुधार हेतु चलायी जाने वाली लाहौर बस सेवा। आज के बच्चे ही कल भारत के भविष्य हैं, इस बात से पूर्णतः सहमत अटल जी ने बच्चों के लिए निःशुल्क व अनिवार्य शिक्षा का कानून बनाया। बच्चों के साथ युवाओं व बुजुर्गों में भी जोश भर दें ऐसे संवादों में उन्होंने कहा -
बाधाएं आती हैं आएं
घिरे प्रलय की घोर घटाएं
पाँव के नीचे अंगारे
सिर पर बरसे यदि ज्वालाएं
निज हाथों में हँसते हँसते
आग लगा कर जलना होगा
कदम मिलाकर चलना होगा।
और उन्होंने जीवनपर्यंत इन पंक्तियों का ही अनुसरण किया। विपरीत परिस्थितियों में डरे नहीं और समय अनुकूल होने पर अहंकार से घिरे नहीं। सदैव सबको साथ लेकर ही क़दम बढ़ाए।
कवि का एक संवेदनशील हृदय रखने वाले कुशल राजनेता ने राष्ट्र को मजबूत बनाने के लिए हर संभव प्रयास किये व अपनी राष्ट्रभक्ति की भावना से भी परिचित कराया। 1942 के परतंत्र भारत में जहाँ आजादी की लड़ाई में हिस्सा लिया और भारत छोड़ो आंदोलन में शामिल होकर कारावास भी गए वहीं 1996 में स्वतंत्र भारत के प्रधानमंत्री बन देश का नेतृत्व किया।
उनकी सहजता, सरलता व कार्यकुशलता के तो विपक्षी भी क़ायल थे। कार्यकुशलता भी ऐसी कि उनके कार्यकाल के दौरान विरोधियों ने भी महत्वपूर्ण कार्यों को अंजाम दिया व कई चिरविरोधियों को तो वे साथ साथ लेकर ही चले। मधुर वाणी के साथ पैने शब्दों व संयमित भाषण कला के मेल ने उन्हें सबके बीच लोकप्रिय किया।
उनकी सहजता कहती थी -
ऊँचे पहाड़ पर
पेड़ नहीं लगते
पौधे नहीं उगते
न घास जमती है
जमती है सिर्फ़ बर्फ
सच्चे मन से सबको अपना लेना व अपने व्यवहार से दुसरों को विवश कर देना कि वे भी उन्हें स्वीकार कर लें, यह उनका सर्वश्रेष्ठ गुण था।
भीड़ में खो जाना
यादों में डूब जाना
स्वयं को भूल जाना
अस्तित्व को अर्थ
और जीवन को सुगंध देता है
इसलिए -
"मतभेद तो हों परंतु मनभेद नहीं होने चाहिए"
जय जवान जय किसान में जय विज्ञान जोड़ने वाले अटल जी देश के विकास और देश की सुरक्षा को ही राजनीति की सार्थकता मानते थे।
एक तरफ़ शांति व प्रेम का संदेश देते हुए उन्होंने लिखा था -
विश्व शांति के हम साधक
हम जंग न होने देंगे
कभी न खेतों में फिर खूनी खाद फैलेगी
खलिहानों में नहीं मौत की फसल खिलेगी
आसमान फिर कभी न अंगारे उगलेगा
एटम से नागासाकी फिर नहीं जलेगी
युद्धविहीन विश्व का सपना भंग न होने देंगे
हम जंग न होने देंगे
परंतु वहीं उन्होंने यह भी कहा कि -
एक नहीं दो नहीं करो बीसों समझौते
पर स्वतंत्र भारत का मस्तक नहीं झुकेगा
सियाचिन की चोटियों पर हमारी वायुसेना द्वारा पाकिस्तानी आक्रांताओं के शिविरों में बमबारी के फैसले ने यह भी बताया कि वे देश की सुरक्षा के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं।
उनकी एक कविता में कुछ पंक्तियाँ ये भी हैं -
लंबी ही नहीं अपितु बड़ी ज़िन्दगी को जीने वाले अटल जी ने 2004 का आम चुनाव हारने बाद राजनैतिक जीवन से सार्वजनिक रूप से घोषणा की और अपने इस राजनैतिक विराम से सबको अचंभित कर दिया। यह एक ऐसा निर्णय था जिसे बड़े बड़े दिग्गज नहीं ले पाते। यह निर्णय परिवार के बुजुर्ग मुखिया के रूप में लिया गया नैतिक निर्णय था। वे चाहते थे कि नया जोश, नया नेतृत्व आगे आये और भारत की बागडोर थामकर विकासशील से विकसित देशों में शामिल करे।
और एक दिन समय के चक्र ने अटल के उस अल्प विराम को पूर्ण विराम दे दिया, पिछले कई वर्षों से मौन उस ओजपूर्ण वाणी को हमेशा के लिए शांत कर दिया।
परन्तु उन्होंने काल के कपाल पर वह नया गीत गाया है जो सदैव -
अमर है अजर है अटल है.....
रंजना यादव