Thursday, January 14, 2021

ख़्वाहिशों की खिचड़ी

 





ख़ुशी और समृद्धि का प्रतीक मकर संक्रांति त्यौहार सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करने पर मनाया जाता है. इस दिन लोग खिचड़ी बनाकर भगवान सूर्यदेव को भोग लगाते हैं, जिस कारण यह पर्व को खिचड़ी के नाम से भी प्रसिद्ध है. इस दिन सुबह सुबह पवित्र नदी में स्नान कर तिल और गुड़ से बनी वस्तु को खाने की परंपरा है. इस पवित्र पर्व के अवसर पर पतंग उड़ाने का अलग ही महत्व है. 

इस दिन सूर्य उत्तरायण हो जाते हैं और गीता के अनुसार जो व्यक्ति उत्तरायण में शरीर का त्याग करता है, वह श्री कृष्ण के परम धाम में निवास करता है. इस दिन लोग मंदिर और अपने घर पर विशेष पूजा का आयोजन करते हैं. पुराणों में इस दिन प्रयाग और गंगासागर में स्नान का बड़ा महत्व बताया गया है, जिस कारण इस तिथि में स्नान एवं दान का करना बड़ा पुण्यदायी माना गया है.

मकर संक्रांति पर खिचड़ी बनने की प्रथा  कैसे शुरू हुई इसकी भी एक कथा है

, आइये जानते हैं!


मान्यता है कि उत्तर प्रदेश के गोरखपुर से मकर संक्रांति के दिन खिचड़ी बनाने की परंपरा की शुरूआत हुई।


खिचड़ी बनने की परंपरा को शुरू करने वाले बाबा गोरखनाथ थे। बाबा गोरखनाथ को भगवान शिव का अंश भी माना जाता है। 

कथा है कि खिलजी के आक्रमण के समय नाथ योगियों को खिलजी से संघर्ष के कारण भोजन बनाने का समय नहीं मिल पाता था। इससे योगी अक्सर भूखे रह जाते थे और कमज़ोर हो रहे थे। 


इस समस्या का हल निकालने के लिए बाबा गोरखनाथ ने दाल, चावल और सब्जी को एक साथ पकाने की सलाह दी। यह व्यंजन काफी पौष्टिक और स्वादिष्ट था। इससे शरीर को तुरंत उर्जा भी मिलती थी। नाथ योगियों को यह व्यंजन काफी पसंद आया। बाबा गोरखनाथ ने इस व्यंजन का नाम खिचड़ी रखा। 


झटपट बनने वाली खिचड़ी से नाथयोगियों की भोजन की समस्या का समाधान हो गया और खिलजी के आतंक को दूर करने में वह सफल रहे। खिलजी से मुक्ति मिलने के कारण गोरखपुर में मकर संक्रांति को विजय दर्शन पर्व के रूप में भी मनाया जाता है।  


गोरखपुर स्थिति बाबा गोरखनाथ के मंदिर के पास मकर संक्रांति के दिन खिचड़ी मेला आरंभ होता है। कई दिनों तक चलने वाले इस मेले में बाबा गोरखनाथ को खिचड़ी का भोग लगाया जाता है और इसे भी प्रसाद रूप में वितरित किया जाता है।

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