यह आकाशवाणी है.....
बड़ी ही जानी पहचानी सी यह पंक्ति बहुत ही सही उच्चारण के साथ कानों में मानो मिश्री घोल देने वाली आवाज़ में कई वर्षों से लगातार हमारे कानों में ही नहीं बल्कि हमारे दिलों में भी गूँज रही है और इसका कारण भी स्पष्ट है कि हम भारतीयों के लिए रेडियो मात्र मनोरंजन अथवा जानकारी देने वाला यंत्र नहीं है बल्कि यह एक भावना है जो हम सभी भारतवासियों के मन में बसी हुई है. कम से कम फौजी भाइयों के लिए पेश किया जाने वाला कार्यक्रम जयमाला या नाटिकाओं, झलकियों और प्रहसन को प्रस्तुत करने वाला कार्यक्रम हवामहल तो यही कहानी कहता है, यही कारण है कि "मोदी के मतवाले राही" से शुरू हुआ यह सफर आज भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के "मन की बात" तक आ पहुँचा है मगर आवाज़ों का ये सिलसिला शुरू कैसे हुआ और हम तक कैसे पहुँचा ?
ध्वनि तरंगों को रेडियो तरंगों में परिवर्तित करके हम रेडियो संदेश के रूप में प्राप्त करते हैं. रेडियो तरंगें विद्युत चुम्बकीय तरंगें हैं जिन्हें रेडियो रिसीवर द्वारा पकड़ कर पुनः ध्वनि रूप में प्रस्तुत किया जाता है. यह प्रयोग पहली बार सन् 1890 में मारकोनी ने वायरलेस टेलीग्राफी पर काम करते हुए किया. मारकोनी जिन्हें हम रेडियो अविष्कारक के रूप में भी जानते हैं ने 1900 में पहली बार रेडियो संदेश भेजा मगर एक से अधिक व्यक्तियों के पास रेडियो संदेश 1906 में भेजा गया जिसे अटलांटिक महासागर में तैर रहे जहाजों के ऑपरेटरों द्वारा सुना गया. यह रेडियो संदेश फेसेंडेन द्वारा वॉयलिन पर बजाया गया संगीत था.
भारत में रेडियो पर आवाज़ों की अनवरत यात्रा का प्रारम्भ सन् 1921 से माना जाता है, जब मुम्बई में हुए टाइम्स अॉफ इंडिया के एक विशेष संगीत कार्यक्रम को पोस्ट एवं टेलीग्राफ विभाग के सहयोग से प्रसारित किया गया. इस कार्यक्रम को पुणे तक सुना गया था.
इसके ठीक बाद ही नवम्बर 1923 में कलकत्ता रेडियो क्लब की स्थापना हुई और वहाँ से रेडियो प्रसारण प्रारम्भ हुआ. इसके साथ ही 1924 में मुम्बई तथा चेन्नई से भी प्रसारण सुनिश्चित किया गया परन्तु ये प्रसारण सीमित समय के लिए ही हो सके. कई कठिनाइयों तथा अव्यवस्थाओं के चलते इन गैर व्यवसायिक रेडियो प्रसारण क्लबों को बंद करना पड़ा.
1924 में मद्रास प्रेसिडेंसी क्लब में रेडियो प्रसारण बंद होने के उपरांत पुनः सन् 1927 में मुंबई और कोलकाता में इंडियन ब्रॉडकास्ट कंपनी का शुभारंभ तत्कालीन वायसराय लॉर्ड इरविन ने किया. इनके प्रसारण को लगभग पचास किलोमीटर के क्षेत्र में सुना जा सकता था. अब तक भारत में कई रेडियो क्लबों की स्थापना हो चुकी थी. ये वो दौर था जब रेडियो सेट रखने के लिए अंग्रेज हुकूमत से लाइसेंस लेना पड़ता था. तब पहली बार 23 जुलाई को इंडियन प्रसारण कंपनी ने बंबई स्टेशन से रेडियो प्रसारण शुरू किया था। अतः भारत में प्रत्येक वर्ष 23 जुलाई को राष्ट्रीय प्रसारण दिवस मनाया जाता है।
कई तैयारियों के बाद भी यह कंपनी 1930 में बंद हो गई मगर इस फ्लॉप कंपनी ने नींव रखी आज के सुपरहिट रेडियो प्रसारण की! सन् 1932 में भारतीय सरकार ने इसकी बागडोर अपने हाथ में ली और शुरुआत की इण्डियन ब्रॉडकास्ट सर्विस की ! वर्ष 1936 में जिसका नाम ऑल इण्डिया रेडियो रखा गया, सन् 1957 में इस ऑल इंडिया रेडियो को नया नाम दिया गया जिसे आज हम आकाशवाणी के नाम से जानते हैं. आकाशवाणी का अर्थ है आकाश से मिला संदेश. पंचतंत्र की कहानियों में भी इस शब्द का ज़िक्र मिला है. यहाँ तक कि महाभारत कथा में भी इसका उल्लेख मिलता है. 1936 में मैसूर के एक विद्वान चिंतक एम वी गोपाल स्वामी ने इस शब्द को गढ़ा था. देश के स्वतंत्र होने के बाद आल इंडिया रेडियो को आकाशवाणी ही कहा जाने लगा."बहुजन हिताय बहुजन सुखाय" ध्येय वाक्य वाले आकाशवाणी को अब सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय अधिकृत रूप से देखने लगा ! समय के साथ मात्र 6 स्टेशन से शुरू हुआ यह सफ़र आज पूरे देश में विस्तारित हो चुका है. अंग्रेजी हिंदी एवं क्षेत्रीय भाषाओं में दिए जाने वाले रेडियो कार्यक्रमों का सिलसिला आज भी जारी है! भाषाई भव्यता तथा विवधता के साथ आज भारतीय रेडियो प्रसारण विश्व के सबसे बड़े रेडियो प्सारण संस्थाओं में से एक है.
भारतीय रेडियो की इस दुनिया में एक बड़ी क्रांति तब आई जब वर्ष 1967 में विज्ञापन प्रसारण सेवा का आरंभ हुआ! इसकी शुरुआत विविध भारती और विज्ञापन प्रसारण सेवा मुंबई से की गई! रेडियो प्रसारण स्वदेशी तथा भारत सरकार द्वारा संचालित होने के कारण संचार के एक बहुत बड़े माध्यम के रूप में सामने आया!
सन् 1970 से तकरीबन 1994 तक रेडियो श्रोताओं की संख्या कई गुना तक बढ़ गई थी. भारत में रेडियो आम जनमानस तक कोई बात पहुँचाने और उनसे जुड़ने का एक बहुत बड़ा माध्यम बन गया था. उस समय लोगों से जुड़ने का कोई और माध्यम हुआ भी नहीं करता था. देश विदेश से जुड़ी सभी जानकारी रेडियो के माध्यम से लोगों तक पहुँचाई जाती थी, जिसमें भारतीय रेडियो एक बहुत बड़ी भूमिका अदा किया करता था. यह स्वदेशी रेडियो प्रसारण था जिसने स्वतंत्रता के पश्चात आये अचानक राजनैतिक बदलाव में भी देश के लोगों को एक सूत्र में बांधे रखा था. इसके द्वारा मौसम कृषि देश विदेश से जुड़ी बातें व खबरें आम आदमी आसानी से प्राप्त कर सकते थे!
आज भी रेडियो के कार्यक्रम को बनाते समय राष्ट्रीय एकता एवं चेतना बनाये रखने पर विशेष रूप से बल दिया जाता है. लेकिन सरकार के सख्त नियंत्रण के कारण देश के सर्वोच्च न्यायालय ने अपने निर्णय में कहा कि रेडियो तरंगों पर सरकार का एकाधिकार नहीं हो सकता फलस्वरूप शिक्षण संस्थाओं को कैंपस रेडियो खोलने की अनुमति मिली, इसके बाद स्वयंसेवी संस्थाओं को भी अपना रेडियो चैनल खोलने की अनुमति मिल गयी जो कि लोकतंत्र की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल है. परन्तु रेडियो को दुरुपयोग से बचाने के लिए गैरसरकारी संस्थाओं को समाचार तथा समसामयिक चर्चाओं के लिए प्रतिबंधित किया गया.
रेडियो प्रसारण के द्वारा देश के लोगों को आधुनिकता और नए तरीकों, उन्नत तकनीकि के बारे में भी बताया जाता रहा है. परन्तु समय के साथ ही देश में आए इस आधुनिकीकरण ने टेलेविज़न की जगह ले ली और प्रसारण के मायने ही बदल गये गए, दूरदर्शन के आने के बाद शहरों में ही नहीं कस्बों और गाँव में भी रेडियो के श्रोताओं की संख्या कम होने लगी. लेकिन इसके बावजूद रेडियो देश का एक अनुभवी संचार माध्यम है और एफ एम रेडियो के आने बाद रेडियो का जादू एक बार फिर सर चढ़ कर बोलने लगा है. नये कलेवर, नये अंदाज़ ने पुन: रेडियो को लोकप्रिय बना दिया है!
रेडियो की विश्वसनीयता पर आज भी कोई टिप्पणी नहीं की जा सकती है! इसके द्वारा ना सिर्फ़ गीत संगीत बल्कि ज्ञान विज्ञान की धारा भी निरंतरता के साथ बह रही है! तब कुछ घंटों में सिमट जाने वाला रेडियो प्रसारण आज डायरेक्ट टू होम के द्वारा पूरे दिन यानी चौबीसों घंटे उपलब्ध है! एक वक्त था जब बड़े से भारी भरकम रेडिसो सेट का कान उमेठ कर उस पर प्रसारण सेट करने की कोशिश में प्राप्त होती थी कुछ चर्र मर्र और कई बार बस घर्र घर्र की आवाज़ें, वहीं अब बस एक छोटे से यंत्र के माध्यम से बेहतरीन स्टीरियो क्वालिटी के साथ अब बिना किसी अवरोध के निरन्तरता के साथ अपने मन की बात सुनी जा सकती है और कही भी जा सकती है और ऐसा हो भी क्यों ना, आखिर यही तो है
देश की सुरीली धड़कन....
रंजना यादव
8765777199
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