Wednesday, November 24, 2021

नीली कमीज़

 



 

#नीली_कमीज़ 


बॉयज़ का फ़ेवरिट ब्लू और गर्ल्स का पिंक... 


ऐसा ही सुनती और देखती आयी हूँ अक्सर मगर मैं ज़रा उल्टे दिमाग की हूँ। ना जाने कब से और क्यों ये नीला रंग मुझे ऐसा भाया की मन करता था पूरी दुनिया ही रंग दूँ समुद्र जैसी गहराई और आसमान जैसी ऊँचाई वाले नीले रंग में।


इलाहाबाद चतुर्थ वाहिनी पीएसी के सरकारी आवास में रहते थे हम। सरकारी होने के कारण घर बाहर से पीली मिट्टी और गेरू के रंग का होता था मगर घर के अंदर का आधे से ज़्यादा हिस्सा हल्का नीला ही हुआ करता था कभी और इसके साथ ही पापा को ख़ाकी के अलावा नीले के ही ज़्यादा शेड्स में देखती थी। हल्का, गहरा, आसमानी, नेवी रंग की चेक, स्ट्राइप्स या सॉलिड शर्ट। वो शर्ट्स भी अक्सर मेरी ही लायी हुई होती थीं या तब ख़रीदी गयीं थीं जब मैं भी साथ होती थी पापा के। 


मेरी पसंद के चक्कर में पापा ने शायद ही कभी अपनी पसंद के बारे में सोचा होगा और मैंने भी कभी जानना ही नहीं चाहा। बस एक बार यूँ ही बातों बातों में पूछ लिया तब पता चला कि मेरे पापा का फ़ेवरिट कलर है पर्पल यानि बैंगनी। 


बहुत ज़ोर से हँसी थी मैं... #पर्पल... ये भी किसी का फ़ेवरिट होता है क्या....


आप बस मुस्कुरा दिए थे और एक बार फिर तैयार हो गए थे मेरी लायी नीली कमीज़ पहन कर। वो नीली कमीज़ आज भी आपके होने का एहसास कराती है और ये भी कि बैंगनी में ही समाया हुआ है नीला भी।


#मेरे_पापा... ❤

चित्र : गूगल से साभार

Wednesday, November 10, 2021

छठ पर्व : प्रकृति पूजन का दिन

 


भगवान भास्‍कर की उपासना का महापर्व है छठ। अर्थात साक्षात ईश्वर का पूजन जो प्रतिदिन प्रकट हो हमें दर्शन देते हैं , जिनसे ही समस्त सृष्टि का जीवन संभव है। परंपराओं की ना भी मानें तो भी प्रकृति पूजन का यह एक अनूठा त्योहार है और पर्यावरण विशेषज्ञों के अनुसार भी इसे प्रकृति के लिए सबसे अनुकूल हिन्दू त्योहार माना गया है और कौन कहता है कि डूबते सूरज को कोई नहीं पूछता क्योंकि इस पर्व का प्रारंभ ही डूबते सूरज को प्रणाम करके होता है।


मूलत: सूर्य षष्ठी व्रत होने के कारण इसे छठ कहा गया है। छठ पूजा चार दिनों तक चलने वाला महापर्व है। इसकी शुरुआत कार्तिक शुक्ल चतुर्थी को तथा समाप्ति कार्तिक शुक्ल सप्तमी को होती है। इस दौरान कई लोग 36 घंटे का कठिन व्रत रखते हैं और अन्‍न-जल भी ग्रहण नहीं करते।                                                                                                     


पहला दिन कार्तिक शुक्ल चतुर्थी ‘नहाय-खाय’ के रूप में मनाया जाता है।


दूसरे दिन कार्तिक शुक्ल पंचमी को व्रतधारी दिन भर का उपवास रखने के बाद शाम को भोजन करते हैं। इसे ‘खरना’ कहा जाता है।


तीसरे दिन कार्तिक शुक्ल षष्ठी को दिन में छठ प्रसाद बनाया जाता है।शाम को पूरी तैयारी और व्यवस्था कर बाँस की टोकरी में अर्घ्य का सूप सजाया जाता है और व्रति के साथ परिवार तथा पड़ोस के सारे लोग अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य देने घाट की ओर चल पड़ते हैं। सभी छठव्रती एक नीयत तालाब या नदी किनारे इकट्ठा होकर सामूहिक रूप से अर्घ्य दान संपन्न करते हैं। सूर्य को जल और दूध का अर्घ्य दिया जाता है तथा छठी मैया की प्रसाद भरे सूप से पूजा की जाती है। इस दौरान कुछ घंटे के लिए मेले का दृश्य बन जाता है।


चौथे दिन कार्तिक शुक्ल सप्तमी की सुबह उदियमान सूर्य को अघ्र्य दिया जाता है। ब्रती वहीं पुनः इक्ट्ठा होते हैं जहाँ उन्होंने शाम को अर्घ्य दिया था। पुनः पिछले शाम की प्रक्रिया की पुनरावृत्ति होती है। अंत में व्रति कच्चे दूध का शरबत पीकर तथा थोड़ा प्रसाद खाकर व्रत पूर्ण करते हैं। 


लोक परंपरा के अनुसार जिस तरह से व्रत व पूजन किया जाता है उसमें लोक कलाओं का अत्यधिक महत्व है! फिर चाहे वह छठी मैया की वेदी की साज सज्जा हो, लोक गीत संगीत हो या कि फिर प्रसाद के रूप में बनने वाले पकवान! हर स्थान पर कला साहित्य सृजन पूर्णता से दिखायी देता है!