Friday, February 28, 2020

लीप दिवस: जो शेष है वो विशेष है


आज 29 फरवरी है। एक अजीब अद्भुत दिन जो हर चार साल में एक बार आता है। बाकी समय के लिए यह मौजूद नहीं है। ये दिन खास है इसलिए आज गूगल ने इस पर खास डूडल बनाया है। वैसे भी बोनस तो हमें हमेशा ही भाता है! तो सेलिब्रेट करने का एक और बहाना, ज़िन्दगी का एक एक्स्ट्रा दिन, हमारे लिए प्रकृति का दिया एक गिफ्ट है ! इतना तो कफ़ी है ना जश्न ए ज़िन्दगी के लिए!

असल में ये एक लीप डे है और 2020 एक लीप वर्ष! लीप वर्ष वह कैलेंडर वर्ष होता है जिसमें एक ग्रेगोरियन कैलेंडर में जोड़ा गया एक बोनस दिन होता है ताकि इसे खगोलीय वर्ष या मौसमी वर्ष के साथ जोड़ा जा सके। यह हर चौथे वर्ष में होता है और 29 फरवरी को उस वर्ष के लिए लीप दिवस के रूप में चिह्नित किया जाता है। अब यह हर चार साल में एक बार होता है तो विशेष तो है ही! प्रकृति हमें हर चौथे साल 24 घंटे अतिरिक्त देती है ! मेरे लिए ये किसी जादू वाली झप्पी से बिल्कुल कम नहीं है!

आइये जानते हैं कि क्यों होता है लीप डे। यह सब पृथ्वी के घूमने और इस तथ्य के कारण है कि एक दिन वास्तव में 24 घंटे का नहीं होता है। खगोलशास्त्रियों के मुताबिक एक दिन-रात 23 घंटे, 56 मिनट और 4.1 सेकंड का होता है। वहीं पृथ्वी को सूरज का एक चक्कर पूरा करने में सिर्फ़ 365 दिन नहीं बल्कि 365 दिन, 5 घंटे, 48 मिनट और 45 सेकंड लगते हैं।  इसलिए हर चार साल में फरवरी में एक अतिरिक्त दिन को शामिल किया गया है! यानि पृथ्वी के घूमने के कारण कैलेंडर तीन साल से पहले जमा हुए अतिरिक्त सेकंड के लिए समायोजित हो जाता है।

आसान शब्‍दों में जानें तो जिस साल को 4 से भाग देने पर शेष जीरो आता हो, वो लीप ईयर होगा, लेकिन सिर्फ वही शताब्‍दी वर्ष लीप ईयर होगा, जो 400 के अंक से पूरी तरह विभाजित हो जाए। इस हिसाब से साल 2000 लीप ईयर था, लेकिन 1900 लीप ईयर नहीं था। साल 2000 और फिर उसके बाद से 21वीं सदी में हर चौथा साल लीप ईयर रहा है। साल 2020 लीप ईयर है यानि अगला लीप ईयर 2024 होगा, उसके बाद 2028 में होगा!

प्रकृति के उपहार एक अतिरिक्त साकारात्मक दिन का पूरे उत्साह के साथ स्वागत कीजिये और उल्लास के साथ व्यतीत कीजिए क्योंकि फिर ये पल ना मिलेंगे दोबारा! 💕

Wednesday, February 19, 2020

एक मुलाकात : अभिनेता संजीव शर्मा के साथ



कड़ी मेहनत और कार्यकुशलता से पूरे होते हैं सपने : संजीव शर्मा

बचपन में हम सभी कभी ना कभी अभिनेता या अभिनेत्री बनने का सपना जरूर देखते हैं! खासकर छोटे शहरों के युवाओं की आँखों में माया नगरी के सपने जुगनू की तरह टिमटिमाते हैं मगर समय के साथ साथ जहाँ कुछ लोगों के सपने अंधेरों में गुम हो जाते हैं, वही कुछ ऐसे लोग भी हैं जो इन सपनों को जीते हैं उनके साथ ही बड़े होते हैं और उन्हें पूरा करने के लिए हर संभव कोशिश भी करते हैं! बहुत मेहनत और संघर्ष के बाद उनकी कोशिश रंग लाती है! उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद से निकले संजीव शर्मा भी एक ऐसा ही नाम हैं, जिन्होंने मुंबई में अथक मेहनत पूरे प्रयास और अपने अभिनय के हुनर से अपने आप को एक अभिनेता के रूप में स्थापित किया ! 


इस लिंक को क्लिक करके आप उनके फेसबुक प्रोफाइल पर जा सकते हैं!



फ़िल्म पद्मावत में हजूरिया बने संजीव शर्मा
धारावाहिक राधा कृष्ण में कृष्ण बने सुमेध मुदालकर और अक्रूर बने संजीव शर्मा

पद्मावत सहित अब तक कई बड़ी फिल्मों में चरित्र अभिनेता के रूप में दिखाई दिए साथ ही साथ दर्जनों धारावाहिक कर चुके संजीव शर्मा इस समय स्टार भारत के लोकप्रिय धारावाहिक राधा कृष्ण में अक्रूर की भूमिका में दिखाई दे रहे हैं ! राधा कृष्ण में अपनी भूमिका से संतुष्ट संजीव शर्मा बताते हैं कि "यह सीरियल बहुत ही अच्छा है, जिसमें राधा कृष्ण के अमर प्रेम को दर्शाया गया है और इस सीरियल को दर्शकों का प्यार लगातार मिल रहा है" इसके अलावा 'राम सिया के लव कुश' में आपने संजीव को महर्षि वाल्मीकि के रूप में भी देखा है! महर्षि बने संजीव का लुक व अभिनय इतना सजीव है कि बच्चे तक मोहित होकर उन पर कविताएं लिखने लगे हैं! जी हाँ हमारे शहर कानपुर की नन्हीं कवयित्री ने भगवान वाल्मीकि बने संजीव शर्मा से प्रेरित होकर भगवान वाल्मीकि पर कविता रची है, इस कविता का लोकार्पण भी स्वयं संजीव शर्मा ने किया!

इस कविता को आप नीचे के लिंक पर देख सकते हैं! 


नन्हीं कवयित्री सुहानी ने रची महर्षि वाल्मीकि पर कविता

लव कुश और गुरू वाल्मीकि

अब तक गुड न्यूज़,  हॉन्टेड, लकी कबूतर, चापेकर ब्रदर्स, पद्मावत जैसी कई बड़े बैनरों की फ़िल्मों के साथ कई धारावाहिक जैसे क्राइम पेट्रोल , सावधान इंडिया , पिया अलबेला , झाँसी की रानी , अम्मा आदि में अपने काम के अनुभव के आधार पर उन्होंने बताया कि फ़िल्म और टी.वी. , दोनों माध्यमों में बहुत अंतर है ! कोई भी कलाकार जब अभिनेता बनने के लिए मुंबई पहुँचता है तो उसकी पहली प्राथमिकता फ़िल्में ही होती हैं , कारण यह है कि बड़े पर्दे से आपको पहचान जल्दी मिल जाती है वहीं छोटा पर्दा हमें धीरे धीरे पहचान देता है ! परन्तु इसके माध्यम से आप घर घर पहुँच जाते हैं और आपकी यह पहचान लंबे समय तक लोगों के दिलों में ज़िन्दा रहती है ! दोनों ही माध्यमों में अपनी अपनी जगह करने के लिए बहुत कुछ है ! 
संजीव शर्मा और गोविंद नामदेव (फ़िल्म चापेकर ब्रदर्स)

अमिताभ बच्चन, शाहरुख खान को आदर्श मानने वाले संजीव शर्मा का कहना है कि एक कलाकार को ताउम्र सीखते रहना चाहिए ! अनुभव हमें बेहतर करने के लिए प्रेरित करते हैं ! गोविंद नामदेव , शहज़ाद ख़ान , शबाना आज़मी और दीपिका पादुकोण व अक्षय कुमार जैसे बड़े और लोकप्रिय कलाकारों के साथ काम करने का अनुभव साझा करते हुए संजीव शर्मा कहते हैं कि कार्यकुशलता के साथ साथ एक कलाकार को व्यवहार कुशल भी होना चाहिए आपका व्यवहार ही आपको भीड़ से अलग खड़ा करता है ! सह कलाकारों का सम्मान , समय की प्रतिबद्धता और काम के प्रति ईमानदारी ही वह तत्व हैं जो हमारा रास्ता आसान बनाते हैं और हमें मंज़िल की तरफ लेकर जाते हैं ! संजीव शर्मा आज जहाँ भी स्थापित हैं इसका श्रेय वे अपने परिवार , मित्रों , शिक्षकों के सहयोग और दर्शकों के प्यार को देते हैं ! 
उत्तर प्रदेश के होने के कारण वे स्वयं को कानपुर से जुड़ा हुआ महसूस करते हैं ! कानपुर से रिश्ता पूछने पर बताते हैं कि वे यहाँ दो बार आ चुके हैं यहाँ के लोग बहुत ही प्यारे और मस्त मिज़ाज के हैं ! ठग्गू के लडडू , यहाँ की चाट और मलाई मक्खन की मिठास के दीवाने संजीव शर्मा मौका मिलने पर हर बार कानपुर आना चाहते हैं! 
जी हाँ! हम कानपुरिया भी बिल्कुल तैयार हैं आपके स्वागत के लिए ! 
कानपुर की तरफ से संजीव शर्मा को उनकी अभिनय यात्रा के लिए बहुत सारी शुभकामनाएं..


               







रंज ना ☺
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विभा रानी : एक आशा जीवन की




विभा यानी प्रकाश और ये प्रकाश पुंज आभासी दुनिया से निकलकर कर मेरी वास्तविक दुनिया में कब शामिल हो गया मुझे पता ही नहीं चला. विभा रानी जी को मैंने कैंसर को हराकर जिंदगी का उत्सव बनाने में समर्थ पाया और नीले पृष्ठ पर समरथ can को देखा तो स्वयं को रोक नहीं सकी और शुभकामनाओं सहित संदेश भेज दिया. कुछ दिन पश्चात उनका स्वयं ही फोन आया. फोन के उस पार से आती मीठी खनकती आवाज़ ने मुझे अपार सकारात्मक ऊर्जा से भर दिया था. ऐसा लगा ही नहीं कि मैं उनसे कभी मिली ही नहीं. मैं उनकी प्रशंसक तो थी ही मगर अब तक की बेहद स्नेह और अपनत्व के साथ कुछ मिठास भरी बातों ने मुझे उनका मुरीद बना दिया था. लोक संस्कृति व मातृभाषा के बचाव के लिए उनके कार्यों के प्रति मैं सदैव ही नतमस्तक थी मगर ऊर्जा और अडिगता के साथ जिस प्रकार मैंने उन्हें नये रास्ते बनाते और उन पर चलते देखा, वह सदैव ही मेरे लिए प्रेरणादायक है. 
महिला अधिकारों की पक्षधर विभा जी को मैंने लड़कियों को वो सिखाते पाया जिसे ना करने के लिए हमें घर में हमेशा हिदायत दी जाती रही है और वो है ज़िद करना. उन्होंने सिखाया कि ज़िद करो - पढ़ने के लिए, आगे बढ़ने के लिए, अन्याय की विरुद्ध लड़ने के लिए और इस ज़िद को इस दृढ़ता को अपनी आदत बना लो.

      

दस वर्षीया सुहानी की कविताओं को जब उन्होंने ना सिर्फ़ सराहा बल्कि आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया और लिखने के लिए हर संभव मंच भी दिया, तब एहसास हुआ कि वे किस क़दर नई कोंपलों को फलने फूलने में मदद ही नहीं करतीं वरन् संरिक्षका बनकर सदैव उनका मार्गदर्शन भी करती हैं.
उनसे पहली मुलाकात हुई उनके कानपुर में प्रथम आगमन पर. मिलते ही उन्होंने गले से लगाया और आशीर्वाद दिया, लगा ही नहीं कि हम पहली बार मिले हैं और ये मौका था अवितोको रूम थिएटर की परिकल्पना को कानपुर में आरंभ करने का. आज मैं कानपुर चैप्टर की संयोजिका हूँ. विभा जी के स्नेह आशीष के साथ मैंने भी ज़िद करना सीख लिया है. आशाओं के पंख खोल लिए हैं और तैयार हूँ ऊँची उड़ान के लिए. विभा जी एक रंगकर्मी, लेखिका, लोक गायिका, संस्कृति व भाषा के संवर्धन के लिए प्रतिबद्ध अनेकानेक लोगों के लिए प्रेरणा है़ं. वे मात्र एक महिला या व्यक्ति ना होकर एक आशा हैं -  जीवन की!
 


रंजना यादव
कानपुर
8765777199

परीक्षा ही तो है





सोनू पढ़ाई कर ले बेटा परीक्षा है. पढ़ेगा नहीं तो अच्छे नंबर कैसे लाएगा और यह क्या हर वक्त मोबाइल लिए रहता है, खबरदार.......! जो अब एग्ज़ाम तक इसे हाथ भी लगाया. 

आपके घर का माहौल भी कुछ ऐसा ही होगा ना आजकल! ऐसे में परीक्षाओं के इस मौसम में जितने परेशान बच्चे नहीं होते उतने तो मां-बाप हो जाते हैं! ऐसा लगता है कि मानो परीक्षा बच्चों की नहीं बल्कि उनके माता-पिता की है!

हर कोई भाग रहा है नंबरों की रेस में मगर यह नहीं सोच रहा है कि यदि नंबरों की इस रेस में आपका बच्चा अव्वल आ भी गया तो भी क्या फायदा कि उसकी मुस्कान ही खो जाए! वह बस एक मशीनी जिंदगी जी कर रह जाए या शायद वह भी नहीं! टॉप पर रहने की भागमभाग से उपजा तनाव कहीं उसकी जिंदगी पर भारी ना पड़ जाये! इसलिए अभी भी वक्त है सुधर जाइये! ज़्यादा अंकों की इस दौड़ भाग से खुद भी दूर रहिये और अपने बच्चों को भी दूर रखिये!  

अभिभावकों के लिए बहुत जरूरी है कि वे अपने बच्चों की क्षमता पहचानें, बच्चों के अध्ययन के अलावा अन्य रचनात्मक गतिविधियों पर भी ध्यान दें. आज के वातावरण को देखते हुए बच्चों के क्रियाकलापों पर ध्यान देने के साथ-साथ आवश्यक है कि अभिभावक उन्हें क्वालिटी टाइम भी दें! आपको और हमें चाहिए कि बच्चों को निरंतर पढ़ने तथा अभ्यास करने के लिए उत्साहित करें. उन्हें नंबरों की दौड़ से दूर रखें परन्तु बेहतर प्रदर्शन के लिए प्रोत्साहित करते रहें ना कि ज्यादा नंबर लाने का दबाव बनाएं! 
हमें मानना होगा कि सभी छात्र अलग-अलग होते हैं, उनकी रुचियाँ व क्षमताएं भी अलग-अलग होती हैं, इसलिए ऐसे में नंबरों को जीवन का आधार बिल्कुल ना बनाएं बल्कि अन्य संभावनाएं तलाशें! 

"काबिल बनो कामयाबी झक मार कर आएगी" 

जी हाँ! हिन्दी फिल्म के इस डायलॉग को परीक्षा ही नहीं जीवन का भी मूल मंत्र बना लो और कर लो दुनिया मुट्ठी में!



परीक्षा में विद्यार्थियों के लिए टिप्स -

🔵 परीक्षा में तनाव मुक्त रहें इसके लिए समय मिलने पर या ब्रेक लेकर हल्का म्यूजिक सुनें या अपनी पसंद का रचनात्मक कार्य करें!

🔵 स्वास्थ्य में गड़बड़ ना हो इसके लिए खानपान का विशेष ध्यान रखें. गरिष्ठ भोज्य पदार्थों और जंक फूड से तो बिल्कुल दूर रहें और साथ ही खूब सारा तरल पिए! पानी बहुत ज़रूरी है! 

🔵 दिनचर्या समयानुसार होगी तो सारे काम भी समय पर होंगे, पढ़ाई भी समय सारणी बनाकर ही करें!

🔵 भावनाओं की किसी भी अतिरेकता से बचें व सभी कार्य योजना पूर्वक करें!

🔵 परीक्षा की तैयारी मन लगाकर पूरी एकाग्रता से करें यही बात परीक्षा देते समय भी ध्यान रखें!

🔵 मेहनत ही सफलता की कुंजी है, इस बात को सदैव याद रखें और समयानुसार ही पढ़ाई करें! 

🔵 कमजोर विषय पर अतिरिक्त समय और ध्यान दें, परीक्षा में कोई भी प्रश्न छोड़े नहीं इसलिए समय को निर्धारित करें! सभी प्रश्न अनिवार्य रूप से ही करें, उत्तर सटीक व स्पष्ट होने चाहिए!





माता पिता भी ध्यान दें -

🔴 माता पिता के लिए अत्यंत आवश्यक है कि बच्चों का मनोबल व आत्मविश्वास बनाए रखें!

🔴 उन्हें विश्वास दिलाएं की बेहतर तैयारी से किये गये हर कार्य का परिणाम बेहतर ही होता है!

🔴 अंकों का अनावश्यक दवाब ना बनायें, व्यर्थ के तनाव से परीक्षा व परीक्षा फल दोनों पर असर पड़ता है!

🔴 बच्चों को निरन्तर एहसास दिलाएं कि वो आपके लिए सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण हैं!

🔴 नंबरों के कम ज़्यादा होने से कहीं ज़्यादा ज़रूरी आपके बच्चे की मुस्कान है! इसलिए परीक्षा परिणाम को अपनी सामाजिक छवि के साथ जोडय कर  बिल्कुल ना देखें!

🔴 बच्चों के खान पान के साथ साथ उनकी नींद का भी भरपूर ध्यान रखें! नींद का ना पूरा होना अनावश्यक ही कई मानसिक तथा शारीरिक परेशानियों का सबब बनता है!

🔴 बच्चों का मनोबल आपके मनोबल से ही जुड़ा होता है, उन्हें एहसास दिलाएं कि हर परिस्थिति में, आप हमेशा उनके साथ हैं!



रंजना यादव
कानपुर
8765777199