Wednesday, February 19, 2020

विभा रानी : एक आशा जीवन की




विभा यानी प्रकाश और ये प्रकाश पुंज आभासी दुनिया से निकलकर कर मेरी वास्तविक दुनिया में कब शामिल हो गया मुझे पता ही नहीं चला. विभा रानी जी को मैंने कैंसर को हराकर जिंदगी का उत्सव बनाने में समर्थ पाया और नीले पृष्ठ पर समरथ can को देखा तो स्वयं को रोक नहीं सकी और शुभकामनाओं सहित संदेश भेज दिया. कुछ दिन पश्चात उनका स्वयं ही फोन आया. फोन के उस पार से आती मीठी खनकती आवाज़ ने मुझे अपार सकारात्मक ऊर्जा से भर दिया था. ऐसा लगा ही नहीं कि मैं उनसे कभी मिली ही नहीं. मैं उनकी प्रशंसक तो थी ही मगर अब तक की बेहद स्नेह और अपनत्व के साथ कुछ मिठास भरी बातों ने मुझे उनका मुरीद बना दिया था. लोक संस्कृति व मातृभाषा के बचाव के लिए उनके कार्यों के प्रति मैं सदैव ही नतमस्तक थी मगर ऊर्जा और अडिगता के साथ जिस प्रकार मैंने उन्हें नये रास्ते बनाते और उन पर चलते देखा, वह सदैव ही मेरे लिए प्रेरणादायक है. 
महिला अधिकारों की पक्षधर विभा जी को मैंने लड़कियों को वो सिखाते पाया जिसे ना करने के लिए हमें घर में हमेशा हिदायत दी जाती रही है और वो है ज़िद करना. उन्होंने सिखाया कि ज़िद करो - पढ़ने के लिए, आगे बढ़ने के लिए, अन्याय की विरुद्ध लड़ने के लिए और इस ज़िद को इस दृढ़ता को अपनी आदत बना लो.

      

दस वर्षीया सुहानी की कविताओं को जब उन्होंने ना सिर्फ़ सराहा बल्कि आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया और लिखने के लिए हर संभव मंच भी दिया, तब एहसास हुआ कि वे किस क़दर नई कोंपलों को फलने फूलने में मदद ही नहीं करतीं वरन् संरिक्षका बनकर सदैव उनका मार्गदर्शन भी करती हैं.
उनसे पहली मुलाकात हुई उनके कानपुर में प्रथम आगमन पर. मिलते ही उन्होंने गले से लगाया और आशीर्वाद दिया, लगा ही नहीं कि हम पहली बार मिले हैं और ये मौका था अवितोको रूम थिएटर की परिकल्पना को कानपुर में आरंभ करने का. आज मैं कानपुर चैप्टर की संयोजिका हूँ. विभा जी के स्नेह आशीष के साथ मैंने भी ज़िद करना सीख लिया है. आशाओं के पंख खोल लिए हैं और तैयार हूँ ऊँची उड़ान के लिए. विभा जी एक रंगकर्मी, लेखिका, लोक गायिका, संस्कृति व भाषा के संवर्धन के लिए प्रतिबद्ध अनेकानेक लोगों के लिए प्रेरणा है़ं. वे मात्र एक महिला या व्यक्ति ना होकर एक आशा हैं -  जीवन की!
 


रंजना यादव
कानपुर
8765777199

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