Monday, August 17, 2020

अमर हैं, अजर हैं, अटल हैं!



कोटि कोटि आकुल हृदयों में

सुलग रही चिंगारी

अमर आग है अमर आग है अमर आग है


ओजवान कवि, जागरूक पत्रकार, प्रखर वक्ता के साथ साथ संवेदनशील कवि, भावुक इंसान और एक शानदार व्यक्तित्व के स्वामी, इतिहास पुरुष श्री अटल बिहारी बाजपेयी एक व्यक्ति नहीं अपितु एक विचार हैं और विचार कभी मरा नहीं करते। वे तो सदैव सत्य की भाँति जीवित रहते हैं और सूर्य की भाँति आने वाली पीढ़ियों को मार्गदर्शन देते हैं।


ओजस्वी वाणी और हृदय में राष्ट्रभक्ति लिए अटल बिहारी बाजपेयी ने सदैव अपनी बात को विनम्रतापूर्वक परंतु तार्किक ढंग से प्रस्तुत किया। आम जनमानस में, उनके वक्तव्यों के माध्यम से सदैव ही स्वाभाविक ऊर्जा व उत्साह का संचार हुआ है। उनकी कार्यकुशलता व ओजपूर्ण भाषण से प्रभावित हो, जवाहर लाल नेहरू ने कहा था कि यह युवा आने वाले समय में देश का प्रधानमंत्री बनेगा। आम आदमी हो अथवा प्रभावशाली व्यक्ति, दोनों ने ही अटल के अटल फैसलों को सराहा है। चाहे वह पोखरण परीक्षण कर दुनिया को यह बताना हो कि भारत भी परमाणु शक्ति प्राप्त राष्ट्र है अथवा पाकिस्तान से संबंध सुधार हेतु चलायी जाने वाली लाहौर बस सेवा। आज के बच्चे ही कल भारत के भविष्य हैं, इस बात से पूर्णतः सहमत अटल जी ने बच्चों के लिए निःशुल्क व अनिवार्य शिक्षा का कानून बनाया। बच्चों के साथ युवाओं व बुजुर्गों में भी जोश भर दें ऐसे संवादों में उन्होंने कहा - 


बाधाएं आती हैं आएं

घिरे प्रलय की घोर घटाएं

पाँव के नीचे अंगारे

सिर पर बरसे यदि ज्वालाएं

निज हाथों में हँसते हँसते

आग लगा कर जलना होगा

कदम मिलाकर चलना होगा।


और उन्होंने जीवनपर्यंत इन पंक्तियों का ही अनुसरण किया। विपरीत परिस्थितियों में डरे नहीं और समय अनुकूल होने पर अहंकार से घिरे नहीं। सदैव सबको साथ लेकर ही क़दम बढ़ाए।


कवि का एक संवेदनशील हृदय रखने वाले कुशल राजनेता ने राष्ट्र को मजबूत बनाने के लिए हर संभव प्रयास किये व अपनी राष्ट्रभक्ति की भावना से भी परिचित कराया। 1942 के परतंत्र भारत में जहाँ आजादी की लड़ाई में हिस्सा लिया और भारत छोड़ो आंदोलन में शामिल होकर कारावास भी गए वहीं 1996 में स्वतंत्र भारत के प्रधानमंत्री बन देश का नेतृत्व किया।

उनकी सहजता, सरलता व कार्यकुशलता के तो विपक्षी भी क़ायल थे। कार्यकुशलता भी ऐसी कि उनके कार्यकाल के दौरान विरोधियों ने भी महत्वपूर्ण कार्यों को अंजाम दिया व कई चिरविरोधियों को तो वे साथ साथ लेकर ही चले। मधुर वाणी के साथ पैने शब्दों व संयमित भाषण कला के मेल ने उन्हें सबके बीच लोकप्रिय किया। 


उनकी सहजता कहती थी -


ऊँचे पहाड़ पर

पेड़ नहीं लगते

पौधे नहीं उगते

न घास जमती है

जमती है सिर्फ़ बर्फ


सच्चे मन से सबको अपना लेना व अपने व्यवहार से दुसरों को विवश कर देना कि वे भी उन्हें स्वीकार कर लें, यह उनका सर्वश्रेष्ठ गुण था।


भीड़ में खो जाना

यादों में डूब जाना

स्वयं को भूल जाना

अस्तित्व को अर्थ

और जीवन को सुगंध देता है


इसलिए -

"मतभेद तो हों परंतु मनभेद नहीं होने चाहिए"


जय जवान जय किसान में जय विज्ञान जोड़ने वाले अटल जी देश के विकास और देश की सुरक्षा को ही राजनीति की सार्थकता मानते थे।

एक तरफ़ शांति व प्रेम का संदेश देते हुए उन्होंने लिखा था -

विश्व शांति के हम साधक

हम जंग न होने देंगे

कभी न खेतों में फिर खूनी खाद फैलेगी

खलिहानों में नहीं मौत की फसल खिलेगी

आसमान फिर कभी न अंगारे उगलेगा

एटम से नागासाकी फिर नहीं जलेगी

युद्धविहीन विश्व का सपना भंग न होने देंगे

हम जंग न होने देंगे


परंतु वहीं उन्होंने यह भी कहा कि - 


एक नहीं दो नहीं करो बीसों समझौते

पर स्वतंत्र भारत का मस्तक नहीं झुकेगा


सियाचिन की चोटियों पर हमारी वायुसेना द्वारा पाकिस्तानी आक्रांताओं के शिविरों में बमबारी के फैसले ने यह भी बताया कि वे देश की सुरक्षा के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं।


उनकी एक कविता में कुछ पंक्तियाँ ये भी हैं -


दाँव पर सब कुछ लगा रुक नहीं सकते
टूट सकते हैं मगर हम झुक नहीं सकते


लंबी ही नहीं अपितु बड़ी ज़िन्दगी को जीने वाले अटल जी ने 2004 का आम चुनाव हारने बाद राजनैतिक जीवन से सार्वजनिक रूप से घोषणा की और अपने इस राजनैतिक विराम से सबको अचंभित कर दिया। यह एक ऐसा निर्णय था जिसे बड़े बड़े दिग्गज नहीं ले पाते। यह निर्णय परिवार के बुजुर्ग मुखिया के रूप में लिया गया नैतिक निर्णय था। वे चाहते थे कि नया जोश, नया नेतृत्व आगे आये और भारत की बागडोर थामकर विकासशील से विकसित देशों में शामिल करे।


और एक दिन समय के चक्र ने अटल के उस अल्प विराम को पूर्ण विराम दे दिया, पिछले कई वर्षों से मौन उस ओजपूर्ण वाणी को हमेशा के लिए शांत कर दिया।

परन्तु उन्होंने काल के कपाल पर वह नया गीत गाया है जो सदैव -

अमर है अजर है अटल है.....



रंजना यादव

Saturday, August 1, 2020

यारो दोस्ती बड़ी ही हसीन है



                    

यार मेरी ज़िन्दगी

एक रिश्ता जो दुनिया में सबसे अनमोल और अनोखा है। माँ की तरह दुलार करता है तो गलती करने पर पिता की तरह कठोर फटकार भी लगा देता है। मार्गदर्शक बनकर रास्ता दिखाता है तो कभी कभी नीम हकीम बन कर ख़तरा ए जान भी हो जाता है।
जी जनाब, बात कर रही हूँ दोस्त और दोस्ती की। दो लोगों के बीच एक ऐसा लगाव जिसमें कोई मतलब ना हो। एक ऐसा रिश्ता जो परिवार का ना होकर भी दिल के सबसे करीब होता है और जिसमें समा जाते हैं दुनिया भर के सारे रिश्ते।
दोस्ती का रिश्ता ऐसा ही रिश्ता है फिर चाहे दोस्ती इंसान की इंसान से हो या पशु - पक्षी, फूल - पौधे, या किताबों से हो।
किताबें हमारी सबसे अच्छी और सच्ची दोस्त हैं जो ना तो आपसे कभी शिकायत करती हैं, ना नाराज़गी दिखाती हैं और ना ही कभी कोई फ़रमाइश ही करती हैं। हाँ मगर आपको देती बहुत कुछ हैं।
आज की प्रासंगिक दुनिया में जब सब कुछ साथ छोड़ जाता है तब भी किताबें आपका साथ निभाती हैं। सुख हो, दुख हो, उदासी हो या हो कोई भी मौसम। किताबें हमेशा साथ देती हैं, पास रहती हैं।
यदि एस्प कहीं साहित्य लिखने पढ़ने के शौकीन हैं तो यकीन मानिए आपको कभी भी खाली समय ही नहीं मिल पायेगा। आप सदैव कुछ न कुछ सृजन करने अथवा पढ़ने में ही व्यस्त रहेंगे। इससे ज़िन्दगी में सकारात्मकता भी बनी रहेगी।
किताबों की दुनिया से बाहर निकल कर भी साहित्यकारों के लिए दोस्ती के बड़े मायने हैं। यही वे लोग हैं जो आपको निखारने और सँवारने का काम किसी जौहरी की तरह करते हैं। दोस्तों में ही हमें बेहतरीन समीक्षक भी मिलते हैं। दोस्तों का आलोचनात्मक रवैया हमें सुधार करने पर मजबूर कर देता है। यानी आलोचक से भी दोस्ती एक बड़ी भूमिका निभाती है। इसलिए ही कबीरदास जी ने कहा है -

निंदक नियरे राखिये, आँगन कुटी छवाय
पानी साबुन बिना, निर्मल करे सुभाय

सच्चा दोस्त वही है जो आपजी अच्छाइयों के लिए तालियाँ बजाकर स्वागत करता है तो गलतियों के लिए ऊँगली भी उठाता है। जब अकेले पड़ जाते हैं तो दोस्त ही कंधे से कंधा मिलाकर साथ खड़ा होता है। जब कोई और असपको सुनने वाला नहीं होता है तब दोस्त न सिर्फ़ आपको सुनता है बल्कि समझता भी है। दोस्त के साथ राज़ छिपाए नहीं जा सकते और वो इसलिए क्योंकि दोस्त कोई और नहीं बल्कि उसके अंदर आप स्वयं होते हैं और आप में होता है दोस्त।

तुम सिर्फ़ तुम नहीं हो मैं हो
मैं सिर्फ मैं नहीं हूँ तुम हूँ
ये थोड़ा सा मुझमें तुम
और तुम में मैं होना ही
हमें बनाता है हम

किसी ने बहुत सुंदर और बिल्कुल सच कहा है कि -

दोस्त ज़िन्दगी में नहीं मिलते
ज़िन्दगी मिलती है दोस्तों में

रंज ना ☺
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Friday, July 24, 2020

नाग पंचमी की अनोखी परंपरा


नागपंचमी की अनोखी परंपरा
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नागपंचमी का त्योहार यूँ तो हर वर्ष देश के विभिन्न भागों में मनाया जाता है लेकिन उत्तरप्रदेश में इसे मनाने का ढंग कुछ अनूठा है। श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को इस त्योहार पर राज्य में गुड़िया को पीटने की अनोखी परम्परा है 
नागपंचमी को महिलाएँ  कपड़े से गुड़िया बनाकर चौराहे पर डालती हैं और बच्चे उन्हें कोड़ो और डंडों से पीटकर खुश होते हैं। इस परम्परा की शुरूआत के बारे में कई कथाएं प्रचलित हैं।

तक्षक नाग के काटने से राजा परीक्षित की मौत हो गई थी। समय बीतने पर तक्षक की चौथी पीढ़ी की कन्या राजा परीक्षित की चौथी पीढ़ी में ब्याही गई। उस कन्या ने ससुराल में एक महिला को यह रहस्य बताकर उससे इस बारे में किसी को भी नहीं बताने के लिए कहा लेकिन उस महिला ने दूसरी महिला को यह बात बता दी और उसने भी उससे यह राज किसी से नहीं बताने के लिए कहा। लेकिन धीरे-धीरे यह बात पूरे नगर में फैल गई।
तक्षक के तत्कालीन राजा ने इस रहस्य को उजागर करने पर नगर की सभी लड़कियों को चौराहे पर इकट्ठा करके कोड़ों से पिटवा कर मरवा दिया। वह इस बात से क्रुद्ध हो गया था कि औरतों के पेट में कोई बात नहीं पचती है। तभी से नागपंचमी पर गुड़िया को पीटने की परम्परा है।

एक अन्य लोककथा के अनुसार किसी नगर में एक भाई अपनी बहन के साथ रहता था। भाई, भगवान भोलेनाथ का भक्त था। वह प्रतिदिन भगवान् भोलेनाथ के मंदिर जाता था जहां उसे एक नागदेवता के दर्शन होते थे। वह लड़का रोजाना उस नाग को दूध पिलाने लगा। धीरे-धीर दोनों में प्रेम बढ़ने लगा और लड़के को देखते ही सांप अपनी मणि छोड़कर उसके पैरों में लिपट जाता था।
एक बार सावन का महीना था। बहन, भाई के साथ मंदिर जाने के लिए तैयार हुई। वहां रोज की तरह सांप अपनी मणि छोड़कर भाई के पैरों मे लिपट गया। बहन को लगा कि सांप भाई को डस रहा है। इस पर उसने डलिया सांप पर दे मारी और उसे पीट-पीटकर मार डाला। भाई ने जब अपनी बहन को पुरी बात बताई तो वह रोने लगी और पश्चाताप करने लगी। लोगों ने कहा कि सांप देवता का रूप होते हैं इसलिए बहन को दंड जरूरी है। लेकिन बहन ने भाई की जान बचाने के लिए सांप को मारा था, इसलिए बहन के रूप में यानी गुड़िया को हर काल में दंड भुगतना पड़ेगा। तभी से गुड़िया को पीटने की पंरपरा निभायी जाने लगी।

साभार : कुछ कही सुनी बातें, कुछ पुस्तकें और गूगल

रंजना यादव
ranjanayadav1981@gmail.com 
8765777199

Tuesday, June 16, 2020

आकाशवाणी की कहानी

 



यह आकाशवाणी है.....
बड़ी ही जानी पहचानी सी यह पंक्ति बहुत ही सही उच्चारण के साथ कानों में मानो मिश्री घोल देने वाली आवाज़ में कई वर्षों से लगातार हमारे कानों में ही नहीं बल्कि हमारे दिलों में गूँज रही है और इसका कारण भी स्पष्ट है कि हम भारतीयों के लिए रेडियो मात्र मनोरंजन अथवा जानकारी देने वाला यंत्र नहीं है बल्कि यह एक भावना है जो हम सभी भारतवासियों के मन में बसी हुई है. कम से कम फौजी भाइयों के लिए पेश किया जाने वाला कार्यक्रम जयमाला या नाटिकाओं, झलकियों और प्रहसन को प्रस्तुत करने वाला कार्यक्रम हवामहल तो यही कहानी कहता है, यही कारण है कि "मोदी के मतवाले राही" से शुरू हुआ यह सफर आज भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के "मन की बात" तक आ पहुंचा है. भारत में रेडियो पर आवाज़ों की यह अनवरत यात्रा शुरू हुई सन 1924 में जब मद्रास प्रेसिडेंसी क्लब में रेडियो प्रसारण पर काम आरंभ किया मगर यह काम कुछ सालों में ही बंद हो गया. पुनः सन् 1927 में मुंबई और कोलकाता में आई. बी. सी. यानी इंडियन ब्रॉडकास्ट कंपनी का शुभारंभ किया गया. तब पहली बार  23 जुलाई को  इंडियन प्रसारण कंपनी ने बंबई स्टेशन से रेडियो प्रसारण शुरू किया था। अतः भारत में प्रत्येक वर्ष 23 जुलाई को राष्ट्रीय प्रसारण दिवस के रूप में मनाया जाता है। परन्तु यह कंपनी भी 1930 में बंद हो गई मगर इस फ्लॉप कंपनी ने नींव रखी आज के सुपरहिट रेडियो प्रसारण की! सन् 1932 में भारतीय सरकार ने इसकी बागडोर अपने हाथ में ली और शुरुआत की इण्डियन ब्रॉडकास्ट सर्विस की ! वर्ष 1936 में जिसका नाम ऑल इण्डिया रेडियो रखा गया, सन् 1957 में इस ऑल इंडिया रेडियो को नया नाम दिया गया जिसे आज हम आकाशवाणी के नाम से जानते हैं! "बहुजन हिताय बहुजन सुखाय" ध्येय वाक्य वाले आकाशवाणी को अब सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय अधिकृत रूप से देखने लगा ! समय के साथ मात्र 6 स्टेशन से शुरू हुआ यह सफर आज पूरे देश में विस्तारित हो चुका है. अंग्रेजी हिंदी एवं क्षेत्रीय भाषाओं में दिए जाने वाले रेडियो कार्यक्रमों का सिलसिला आज भी जारी है! रेडियो की दुनिया में एक बड़ी क्रांति तब आई जब वर्ष 1967 में विज्ञापन प्रसारण सेवा का आरंभ हुआ! इसकी शुरुआत विविध भारती और विज्ञापन प्रसारण सेवा मुंबई से की गई! रेडियो प्रसारण स्वदेशी तथा भारत सरकार द्वारा संचालित होने के कारण संचार के एक बहुत बड़े माध्यम के रूप में सामने आया! इसके द्वारा मौसम कृषि देश विदेश से जुड़ी बातें व जानकारियाँ जनमानस आसानी से प्राप्त कर सकते थे! आज भी इसकी विश्वसनीयता पर कोई टिप्पणी नहीं की जा सकती! रेडियो द्वारा गीत संगीत व ज्ञान की धारा भी निरंतरता के साथ बह रही है! तब कुछ घंटों में सिमट जाने वाला रेडियो प्रसारण आज DTH यानी डायरेक्ट टू होम के द्वारा पूरे दिन यानी चौबीसों घंटे उपलब्ध है! एक वक्त था जब बड़े से भारी भरकम रेडिसो सेट का कान उमेठ कर उस पर प्रसारण सेट करने की कोशिश में प्राप्त होती थी कुछ चर्र मर्र और कई बार बस घर्र घर्र की आवाज़ें, वहीं अब बस एक छोटे से यंत्र के माध्यम से बेहतरीन स्टीरियो क्वालिटी के साथ अब बिना किसी अवरोध के निरन्तरता के साथ अपने मन की बात सुनी जा सकती है और कही जा सकती है! आखिर यही तो है..
देश की सुरीली धड़कन....

रंजना यादव
8765777199
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Wednesday, April 1, 2020

कोरोना: जानकारी ही बचाव

                      


कोरोना वायरस कई तरह के विषाणुओं का एक समूह है जो  स्तनधारियों में रोग उत्पन्न करता है! अधिकांशत: इसका संक्रमण गंभीर नहीं होता परंतु मनुष्य से मनुष्य में संक्रमण ने इसे घातक बना दिया है! मनुष्य में यह श्वसन तंत्र को प्रभावित करता है! कई बार यह संक्रमण इतना गंभीर होता है कि मृत्यु तक हो सकती है, परंतु ज्यादातर इस विषाणु से जनित रोग ठीक हो जाते हैं! करीब 10 से 15% को ही सघन चिकित्सा की आवश्यकता होती है! इसकी मृत्यु दर तकरीबन 4 से 5% है!

अब तक कोरोना परिवार के छ: वायरस सामने आ चुके हैं! इस समय पूरी दुनिया में कोहराम मचाने वाला कोरोना वायरस इस परिवार का सातवां वायरस है! यह वायरस अत्यंत सूक्ष्म मगर तेजी से प्रभावी होने वाला वायरस है! इसे नाम दिया गया है कोविड-19 ! अनुमान है कि यह वायरस सबसे पहले चीन में बिल्लियों द्वारा मानव शरीर तक पहुँचा है! इस वायरस का संक्रमण दिसंबर महीने में चीन से शुरू हुआ, इससे पहले इसे कभी नहीं देखा गया!  यह वायरस अलग-अलग सतहों पर 2 से 3 घंटों से लेकर 21 दिनों तक जीवित रह सकता है! यह वायरस चलती अथवा बहती हवा में ज्यादा ठहर नहीं पाता है लेकिन बंद जगह में जैसे शॉपिंग मॉल, सिनेमा हॉल या हवाई अड्डे आदि पर यह तेजी से फैल सकता है!

कोरोना की जाँच नाक व गले से नमूना (बलगम) लेकर विशेष तरह के सूक्ष्मदर्शी यंत्रों से की जाती है!

                  


लक्षण :

यह वायरस एक व्यक्ति से दूसरे में फैलता है, इसके लक्षण फ्लू से मिलते जुलते हैं! विश्व संगठन द्वारा महामारी घोषित किए जाने वाले कोरोनावायरस संक्रमण के मुख्य लक्षण इस प्रकार हैं -

⚫ कोरोनावायरस का मुख्य लक्षण शरीर के तापमान का बढ़ना है शरीर के तापमान का 100 डिग्री अथवा अधिक हो जाना इसका लक्षण माना जाता है! 99 या 99.5 डिग्री तापमान को सामान्य ही माना जाता है!

⚫ सुखी खाँसी का आना परंतु छाती में कफ़ अथवा बलगम महसूस करना भी कोरोना संक्रमण का ही लक्षण है!

 ⚫ खाँसी के साथ शरीर दर्द, सिर दर्द अौर थकान महसूस करना भी कोरोना संक्रमण को प्रकट करता है!

⚫ कोरोना संक्रमण में कई बार बुखार के साथ ठंड अथवा कंपकंपी भी महसूस होती है!
 
⚫ डायरिया भी कोरोना संक्रमण का एक लक्षण होता है, कई बार उल्टी व दस्त का आना भी संक्रमण की पहचान कराता है!
   
⚫ सर्दी खाँसी के साथ नाक बहना भी एक लक्षण है परंतु नाक बहना मुख्य लक्षण नहीं माना गया है! यह सामान्य सर्दी या एलर्जी भी हो सकती है
   
⚫ यह भी पाया गया है कि संक्रमित व्यक्ति की सुनने व स्वाद लेने की क्षमता में भी कमी हो जाती है!
     
⚫ संक्रमित व्यक्ति को पाँच दिनों के भीतर साँस लेने में समस्या आ सकती है सांस लेने में समस्या फेफड़ों में फैलते कफ के कारण होती है!



बचाव :

कोरोना वायरस संक्रमित व्यक्ति का उपचार मात्र उसकी रोग प्रतिरोधक क्षमता पर निर्भर करता है अभी तक इस वायरस की कोई दवा या वैक्सीन उपलब्ध नहीं है ऐसे में बचाव ही मात्र एक उपचार

⚫ खाँसी और छींक के साथ उड़ती हुई छींटों से यह वायरस आसपास के व्यक्तियों को संक्रमित करता है अतः संक्रमित मरीज को मास्क का प्रयोग करना चाहिए!

⚫ सामान्य स्थितियों में भी खास तैयारी के समय मुंह व नाक पर नैपकिन का प्रयोग करना चाहिए!

⚫ जिन्हें फ्लू हो, ऐसे व्यक्तियों से कम से कम 3 फीट की दूरी रखनी चाहिए!

⚫ व्यक्तिगत स्वच्छता बनाए रखने के लिए हाथों को कोहनी तक नियमित समयांतराल पर साबुन व पानी से अच्छी तरह धोते रहना चाहिए! इसके लिए अल्कोहल आधारित सैनिटाइज़र का प्रयोग भी किया जा सकता है!

⚫ अपने हाथों को नाक, मुँह व चेहरे पर लगाने से बचना चाहिए!


⚫ इम्यून सिस्टम को स्वस्थ रखें इसके लिए विटामिन सी का भरपूर प्रयोग करें विटामिन सी हमारी इम्यूनिटी को बढ़ाता है इसके अलावा आहार में ऐसे खाद्य पदार्थों का सेवन करें जिससे रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है!

⚫ तनाव, शराब का सेवन व धूम्रपान हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता को क्षीण करने वाले कारक हैं, अत: इन से दूर रहें!



इतनी आक्रामकता और शीघ्रता के साथ बढ़ते हुए कोरोनावायरस संक्रमण से घबराहट व भय स्वाभाविक है परंतु कोरोना संक्रमण का अर्थ सीधी मृत्यु नहीं है! कई उदाहरण इसके साक्ष्य हैं कि उपचार के बाद मरीज ठीक भी हुए हैं! हालांकि अब तक इसका कोई पुख्ता इलाज उपलब्ध नहीं है अतः जागरुकता के साथ-साथ विशेष सतर्कता भी आवश्यक है!


रंजना यादव

Sunday, March 8, 2020

आधी दुनिया, पूरा सच



चलिये आज कुछ अपनी बात करते हैं. अपनी यानि महिलाओं की यानि दुनिया की आधी आबादी की जो किसी ना किसी रूप में आपकी पूरी दुनिया ही बन जाती हैं!


अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस मना रहे हैं हम, जी हाँ आठ मार्च को. हर वर्ष यह इसी तिथि में मनाया जाता है। विश्व के विभिन्न क्षेत्रों में महिलाओं के प्रति सम्मान, प्रशंसा और प्यार प्रकट करते हुए इस दिन को महिलाओं के आर्थिक, राजनीतिक और सामाजिक उपलब्धियों के उपलक्ष्य में उत्सव के तौर पर मनाया जाता है। ठीक उसी प्रकार से जिस प्रकार से होली, दीवाली, क्रिसमस या कोई अन्य त्योहार व उत्सव मनाते हैं.

महिलाओं को समान अधिकार मिले व उन पर बढ़ते हुए अत्याचार को रोकने के लिए आम महिलाओं द्वारा किये गये आन्दोलन का परिणाम है यह महिला दिवस. परंतु कुछ क्षेत्रों में, यह दिवस अपना मूल स्वरूप खो रहा है और अब कई स्थानों पर यह मात्र महिलाओं के प्रति अपने प्यार को अभिव्यक्त करने के लिए एक तरह से मातृ दिवस और वेलेंटाइन डे की ही तरह बस अवसर बन कर रह गया है. हालांकि, अन्य क्षेत्रों में, संयुक्त राष्ट्र द्वारा चयनित राजनीतिक और मानव अधिकार विषयवस्तु के साथ महिलाओं के राजनीतिक एवं सामाजिक उत्थान के लिए अभी भी इसे बड़े जोर-शोर से मनाया जाता हैं। 

इतिहास के अनुसार सबसे पहला दिवस, न्यूयॉर्क शहर में एक समाजवादी राजनीतिक कार्यक्रम के रूप में आयोजित किया गया था। फिर सोवियत संघ ने इस दिन को एक राष्ट्रीय अवकाश घोषित किया और यह आसपास के अन्य देशों में भी फैल गया। इसे अब कई पूर्वी देशों में भी मनाया जाता है। लगभग सभी विकसित व विकासशील देशों में इसे स्वीकार किया जा चुका है.

जी हाँ हमारे देश में भी यह किसी उत्सव की तरह ही मनाया जाता है, कई समारोह व संगोष्ठियाँ आयोजित की जाती हैं, रंगारंग कार्यक्रमों का आयोजन होता है. जहाँ नारी पहले से ही देवी का स्वरूप मानी जाती है, ऐसे देश में इस दिन जगह जगह मंच देकर महिलाओं को सम्मानित किया जाता है, नारी विमर्श का आयोजन किया जाता है, महिला उत्थान की बड़ी बड़ी बातें भी होती हैं. मगर कई बार इन सबमें शामिल होतें हैं दोहरे चेहरे और चरित्र. यूँ तो भारत में महिलाओं को शिक्षा, मतदान का अधिकार और समस्त मौलिक अधिकार भी प्राप्त हैं। धीरे-धीरे परिस्थितियाँ बदल भी रही हैं। भारत में आज महिलाएं हर क्षेत्र में पुरूषों के कंधे से कंधा और कदम से कदम मिला कर चल रही हैं। माता-पिता अब बेटे-बेटियों में कोई फर्क नहीं समझते हैं। परंतु यह सोच समाज के कुछ लोगों तक ही सीमित है।  विडंबना है कि कन्या पूजन करने वाले बहुत से लोग ही अपने स्वयं के घर में बेटी नहीं चाहते. मंच पर सम्मानित करने वाले कई लोग स्वयं के घर में महिलाओं को वो स्थान नहीं दे पाते. पुरूषों की तो बात ही नहीं है स्वयं महिलाएं ही महिलाओं का साथ नहीं देतीं यहाँ, क्योंकि उनकी मानसिकता पर भी कहीं ना कहीं रूढ़िवादिता व नकारात्मकता का प्रभाव है.

सच तो ये है कि नारियों को पूजने वाले हमारे देश में कभी महिला दिवस मनाने की आवश्यकता ही नहीं होती यदि हमारी कथनी और करनी में अन्तर नहीं आया होता. आज आवश्यकता सिर्फ़ ये है कि देवी नहीं बनाइये हमें और ना ही महानता की प्रतिमूर्ति समझिये, बस इतनी सी गुज़ारिश है कि आम इंसान समझ लीजिए. जो सम्मान मंच पर देते हैं वही सम्मान, अधिकार और प्यार मंच से नीचे उतर कर या घर में भी दे दीजिए और साथ ही जिस दिन आपकी भाषा संयत हो जाएगी, आप श्ब्दों की मर्यादा नहीं खोएंगे, बस उसी दिन होगा असली महिला दिवस.

रंजना यादव

Friday, February 28, 2020

लीप दिवस: जो शेष है वो विशेष है


आज 29 फरवरी है। एक अजीब अद्भुत दिन जो हर चार साल में एक बार आता है। बाकी समय के लिए यह मौजूद नहीं है। ये दिन खास है इसलिए आज गूगल ने इस पर खास डूडल बनाया है। वैसे भी बोनस तो हमें हमेशा ही भाता है! तो सेलिब्रेट करने का एक और बहाना, ज़िन्दगी का एक एक्स्ट्रा दिन, हमारे लिए प्रकृति का दिया एक गिफ्ट है ! इतना तो कफ़ी है ना जश्न ए ज़िन्दगी के लिए!

असल में ये एक लीप डे है और 2020 एक लीप वर्ष! लीप वर्ष वह कैलेंडर वर्ष होता है जिसमें एक ग्रेगोरियन कैलेंडर में जोड़ा गया एक बोनस दिन होता है ताकि इसे खगोलीय वर्ष या मौसमी वर्ष के साथ जोड़ा जा सके। यह हर चौथे वर्ष में होता है और 29 फरवरी को उस वर्ष के लिए लीप दिवस के रूप में चिह्नित किया जाता है। अब यह हर चार साल में एक बार होता है तो विशेष तो है ही! प्रकृति हमें हर चौथे साल 24 घंटे अतिरिक्त देती है ! मेरे लिए ये किसी जादू वाली झप्पी से बिल्कुल कम नहीं है!

आइये जानते हैं कि क्यों होता है लीप डे। यह सब पृथ्वी के घूमने और इस तथ्य के कारण है कि एक दिन वास्तव में 24 घंटे का नहीं होता है। खगोलशास्त्रियों के मुताबिक एक दिन-रात 23 घंटे, 56 मिनट और 4.1 सेकंड का होता है। वहीं पृथ्वी को सूरज का एक चक्कर पूरा करने में सिर्फ़ 365 दिन नहीं बल्कि 365 दिन, 5 घंटे, 48 मिनट और 45 सेकंड लगते हैं।  इसलिए हर चार साल में फरवरी में एक अतिरिक्त दिन को शामिल किया गया है! यानि पृथ्वी के घूमने के कारण कैलेंडर तीन साल से पहले जमा हुए अतिरिक्त सेकंड के लिए समायोजित हो जाता है।

आसान शब्‍दों में जानें तो जिस साल को 4 से भाग देने पर शेष जीरो आता हो, वो लीप ईयर होगा, लेकिन सिर्फ वही शताब्‍दी वर्ष लीप ईयर होगा, जो 400 के अंक से पूरी तरह विभाजित हो जाए। इस हिसाब से साल 2000 लीप ईयर था, लेकिन 1900 लीप ईयर नहीं था। साल 2000 और फिर उसके बाद से 21वीं सदी में हर चौथा साल लीप ईयर रहा है। साल 2020 लीप ईयर है यानि अगला लीप ईयर 2024 होगा, उसके बाद 2028 में होगा!

प्रकृति के उपहार एक अतिरिक्त साकारात्मक दिन का पूरे उत्साह के साथ स्वागत कीजिये और उल्लास के साथ व्यतीत कीजिए क्योंकि फिर ये पल ना मिलेंगे दोबारा! 💕

Wednesday, February 19, 2020

एक मुलाकात : अभिनेता संजीव शर्मा के साथ



कड़ी मेहनत और कार्यकुशलता से पूरे होते हैं सपने : संजीव शर्मा

बचपन में हम सभी कभी ना कभी अभिनेता या अभिनेत्री बनने का सपना जरूर देखते हैं! खासकर छोटे शहरों के युवाओं की आँखों में माया नगरी के सपने जुगनू की तरह टिमटिमाते हैं मगर समय के साथ साथ जहाँ कुछ लोगों के सपने अंधेरों में गुम हो जाते हैं, वही कुछ ऐसे लोग भी हैं जो इन सपनों को जीते हैं उनके साथ ही बड़े होते हैं और उन्हें पूरा करने के लिए हर संभव कोशिश भी करते हैं! बहुत मेहनत और संघर्ष के बाद उनकी कोशिश रंग लाती है! उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद से निकले संजीव शर्मा भी एक ऐसा ही नाम हैं, जिन्होंने मुंबई में अथक मेहनत पूरे प्रयास और अपने अभिनय के हुनर से अपने आप को एक अभिनेता के रूप में स्थापित किया ! 


इस लिंक को क्लिक करके आप उनके फेसबुक प्रोफाइल पर जा सकते हैं!



फ़िल्म पद्मावत में हजूरिया बने संजीव शर्मा
धारावाहिक राधा कृष्ण में कृष्ण बने सुमेध मुदालकर और अक्रूर बने संजीव शर्मा

पद्मावत सहित अब तक कई बड़ी फिल्मों में चरित्र अभिनेता के रूप में दिखाई दिए साथ ही साथ दर्जनों धारावाहिक कर चुके संजीव शर्मा इस समय स्टार भारत के लोकप्रिय धारावाहिक राधा कृष्ण में अक्रूर की भूमिका में दिखाई दे रहे हैं ! राधा कृष्ण में अपनी भूमिका से संतुष्ट संजीव शर्मा बताते हैं कि "यह सीरियल बहुत ही अच्छा है, जिसमें राधा कृष्ण के अमर प्रेम को दर्शाया गया है और इस सीरियल को दर्शकों का प्यार लगातार मिल रहा है" इसके अलावा 'राम सिया के लव कुश' में आपने संजीव को महर्षि वाल्मीकि के रूप में भी देखा है! महर्षि बने संजीव का लुक व अभिनय इतना सजीव है कि बच्चे तक मोहित होकर उन पर कविताएं लिखने लगे हैं! जी हाँ हमारे शहर कानपुर की नन्हीं कवयित्री ने भगवान वाल्मीकि बने संजीव शर्मा से प्रेरित होकर भगवान वाल्मीकि पर कविता रची है, इस कविता का लोकार्पण भी स्वयं संजीव शर्मा ने किया!

इस कविता को आप नीचे के लिंक पर देख सकते हैं! 


नन्हीं कवयित्री सुहानी ने रची महर्षि वाल्मीकि पर कविता

लव कुश और गुरू वाल्मीकि

अब तक गुड न्यूज़,  हॉन्टेड, लकी कबूतर, चापेकर ब्रदर्स, पद्मावत जैसी कई बड़े बैनरों की फ़िल्मों के साथ कई धारावाहिक जैसे क्राइम पेट्रोल , सावधान इंडिया , पिया अलबेला , झाँसी की रानी , अम्मा आदि में अपने काम के अनुभव के आधार पर उन्होंने बताया कि फ़िल्म और टी.वी. , दोनों माध्यमों में बहुत अंतर है ! कोई भी कलाकार जब अभिनेता बनने के लिए मुंबई पहुँचता है तो उसकी पहली प्राथमिकता फ़िल्में ही होती हैं , कारण यह है कि बड़े पर्दे से आपको पहचान जल्दी मिल जाती है वहीं छोटा पर्दा हमें धीरे धीरे पहचान देता है ! परन्तु इसके माध्यम से आप घर घर पहुँच जाते हैं और आपकी यह पहचान लंबे समय तक लोगों के दिलों में ज़िन्दा रहती है ! दोनों ही माध्यमों में अपनी अपनी जगह करने के लिए बहुत कुछ है ! 
संजीव शर्मा और गोविंद नामदेव (फ़िल्म चापेकर ब्रदर्स)

अमिताभ बच्चन, शाहरुख खान को आदर्श मानने वाले संजीव शर्मा का कहना है कि एक कलाकार को ताउम्र सीखते रहना चाहिए ! अनुभव हमें बेहतर करने के लिए प्रेरित करते हैं ! गोविंद नामदेव , शहज़ाद ख़ान , शबाना आज़मी और दीपिका पादुकोण व अक्षय कुमार जैसे बड़े और लोकप्रिय कलाकारों के साथ काम करने का अनुभव साझा करते हुए संजीव शर्मा कहते हैं कि कार्यकुशलता के साथ साथ एक कलाकार को व्यवहार कुशल भी होना चाहिए आपका व्यवहार ही आपको भीड़ से अलग खड़ा करता है ! सह कलाकारों का सम्मान , समय की प्रतिबद्धता और काम के प्रति ईमानदारी ही वह तत्व हैं जो हमारा रास्ता आसान बनाते हैं और हमें मंज़िल की तरफ लेकर जाते हैं ! संजीव शर्मा आज जहाँ भी स्थापित हैं इसका श्रेय वे अपने परिवार , मित्रों , शिक्षकों के सहयोग और दर्शकों के प्यार को देते हैं ! 
उत्तर प्रदेश के होने के कारण वे स्वयं को कानपुर से जुड़ा हुआ महसूस करते हैं ! कानपुर से रिश्ता पूछने पर बताते हैं कि वे यहाँ दो बार आ चुके हैं यहाँ के लोग बहुत ही प्यारे और मस्त मिज़ाज के हैं ! ठग्गू के लडडू , यहाँ की चाट और मलाई मक्खन की मिठास के दीवाने संजीव शर्मा मौका मिलने पर हर बार कानपुर आना चाहते हैं! 
जी हाँ! हम कानपुरिया भी बिल्कुल तैयार हैं आपके स्वागत के लिए ! 
कानपुर की तरफ से संजीव शर्मा को उनकी अभिनय यात्रा के लिए बहुत सारी शुभकामनाएं..


               







रंज ना ☺
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विभा रानी : एक आशा जीवन की




विभा यानी प्रकाश और ये प्रकाश पुंज आभासी दुनिया से निकलकर कर मेरी वास्तविक दुनिया में कब शामिल हो गया मुझे पता ही नहीं चला. विभा रानी जी को मैंने कैंसर को हराकर जिंदगी का उत्सव बनाने में समर्थ पाया और नीले पृष्ठ पर समरथ can को देखा तो स्वयं को रोक नहीं सकी और शुभकामनाओं सहित संदेश भेज दिया. कुछ दिन पश्चात उनका स्वयं ही फोन आया. फोन के उस पार से आती मीठी खनकती आवाज़ ने मुझे अपार सकारात्मक ऊर्जा से भर दिया था. ऐसा लगा ही नहीं कि मैं उनसे कभी मिली ही नहीं. मैं उनकी प्रशंसक तो थी ही मगर अब तक की बेहद स्नेह और अपनत्व के साथ कुछ मिठास भरी बातों ने मुझे उनका मुरीद बना दिया था. लोक संस्कृति व मातृभाषा के बचाव के लिए उनके कार्यों के प्रति मैं सदैव ही नतमस्तक थी मगर ऊर्जा और अडिगता के साथ जिस प्रकार मैंने उन्हें नये रास्ते बनाते और उन पर चलते देखा, वह सदैव ही मेरे लिए प्रेरणादायक है. 
महिला अधिकारों की पक्षधर विभा जी को मैंने लड़कियों को वो सिखाते पाया जिसे ना करने के लिए हमें घर में हमेशा हिदायत दी जाती रही है और वो है ज़िद करना. उन्होंने सिखाया कि ज़िद करो - पढ़ने के लिए, आगे बढ़ने के लिए, अन्याय की विरुद्ध लड़ने के लिए और इस ज़िद को इस दृढ़ता को अपनी आदत बना लो.

      

दस वर्षीया सुहानी की कविताओं को जब उन्होंने ना सिर्फ़ सराहा बल्कि आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया और लिखने के लिए हर संभव मंच भी दिया, तब एहसास हुआ कि वे किस क़दर नई कोंपलों को फलने फूलने में मदद ही नहीं करतीं वरन् संरिक्षका बनकर सदैव उनका मार्गदर्शन भी करती हैं.
उनसे पहली मुलाकात हुई उनके कानपुर में प्रथम आगमन पर. मिलते ही उन्होंने गले से लगाया और आशीर्वाद दिया, लगा ही नहीं कि हम पहली बार मिले हैं और ये मौका था अवितोको रूम थिएटर की परिकल्पना को कानपुर में आरंभ करने का. आज मैं कानपुर चैप्टर की संयोजिका हूँ. विभा जी के स्नेह आशीष के साथ मैंने भी ज़िद करना सीख लिया है. आशाओं के पंख खोल लिए हैं और तैयार हूँ ऊँची उड़ान के लिए. विभा जी एक रंगकर्मी, लेखिका, लोक गायिका, संस्कृति व भाषा के संवर्धन के लिए प्रतिबद्ध अनेकानेक लोगों के लिए प्रेरणा है़ं. वे मात्र एक महिला या व्यक्ति ना होकर एक आशा हैं -  जीवन की!
 


रंजना यादव
कानपुर
8765777199

परीक्षा ही तो है





सोनू पढ़ाई कर ले बेटा परीक्षा है. पढ़ेगा नहीं तो अच्छे नंबर कैसे लाएगा और यह क्या हर वक्त मोबाइल लिए रहता है, खबरदार.......! जो अब एग्ज़ाम तक इसे हाथ भी लगाया. 

आपके घर का माहौल भी कुछ ऐसा ही होगा ना आजकल! ऐसे में परीक्षाओं के इस मौसम में जितने परेशान बच्चे नहीं होते उतने तो मां-बाप हो जाते हैं! ऐसा लगता है कि मानो परीक्षा बच्चों की नहीं बल्कि उनके माता-पिता की है!

हर कोई भाग रहा है नंबरों की रेस में मगर यह नहीं सोच रहा है कि यदि नंबरों की इस रेस में आपका बच्चा अव्वल आ भी गया तो भी क्या फायदा कि उसकी मुस्कान ही खो जाए! वह बस एक मशीनी जिंदगी जी कर रह जाए या शायद वह भी नहीं! टॉप पर रहने की भागमभाग से उपजा तनाव कहीं उसकी जिंदगी पर भारी ना पड़ जाये! इसलिए अभी भी वक्त है सुधर जाइये! ज़्यादा अंकों की इस दौड़ भाग से खुद भी दूर रहिये और अपने बच्चों को भी दूर रखिये!  

अभिभावकों के लिए बहुत जरूरी है कि वे अपने बच्चों की क्षमता पहचानें, बच्चों के अध्ययन के अलावा अन्य रचनात्मक गतिविधियों पर भी ध्यान दें. आज के वातावरण को देखते हुए बच्चों के क्रियाकलापों पर ध्यान देने के साथ-साथ आवश्यक है कि अभिभावक उन्हें क्वालिटी टाइम भी दें! आपको और हमें चाहिए कि बच्चों को निरंतर पढ़ने तथा अभ्यास करने के लिए उत्साहित करें. उन्हें नंबरों की दौड़ से दूर रखें परन्तु बेहतर प्रदर्शन के लिए प्रोत्साहित करते रहें ना कि ज्यादा नंबर लाने का दबाव बनाएं! 
हमें मानना होगा कि सभी छात्र अलग-अलग होते हैं, उनकी रुचियाँ व क्षमताएं भी अलग-अलग होती हैं, इसलिए ऐसे में नंबरों को जीवन का आधार बिल्कुल ना बनाएं बल्कि अन्य संभावनाएं तलाशें! 

"काबिल बनो कामयाबी झक मार कर आएगी" 

जी हाँ! हिन्दी फिल्म के इस डायलॉग को परीक्षा ही नहीं जीवन का भी मूल मंत्र बना लो और कर लो दुनिया मुट्ठी में!



परीक्षा में विद्यार्थियों के लिए टिप्स -

🔵 परीक्षा में तनाव मुक्त रहें इसके लिए समय मिलने पर या ब्रेक लेकर हल्का म्यूजिक सुनें या अपनी पसंद का रचनात्मक कार्य करें!

🔵 स्वास्थ्य में गड़बड़ ना हो इसके लिए खानपान का विशेष ध्यान रखें. गरिष्ठ भोज्य पदार्थों और जंक फूड से तो बिल्कुल दूर रहें और साथ ही खूब सारा तरल पिए! पानी बहुत ज़रूरी है! 

🔵 दिनचर्या समयानुसार होगी तो सारे काम भी समय पर होंगे, पढ़ाई भी समय सारणी बनाकर ही करें!

🔵 भावनाओं की किसी भी अतिरेकता से बचें व सभी कार्य योजना पूर्वक करें!

🔵 परीक्षा की तैयारी मन लगाकर पूरी एकाग्रता से करें यही बात परीक्षा देते समय भी ध्यान रखें!

🔵 मेहनत ही सफलता की कुंजी है, इस बात को सदैव याद रखें और समयानुसार ही पढ़ाई करें! 

🔵 कमजोर विषय पर अतिरिक्त समय और ध्यान दें, परीक्षा में कोई भी प्रश्न छोड़े नहीं इसलिए समय को निर्धारित करें! सभी प्रश्न अनिवार्य रूप से ही करें, उत्तर सटीक व स्पष्ट होने चाहिए!





माता पिता भी ध्यान दें -

🔴 माता पिता के लिए अत्यंत आवश्यक है कि बच्चों का मनोबल व आत्मविश्वास बनाए रखें!

🔴 उन्हें विश्वास दिलाएं की बेहतर तैयारी से किये गये हर कार्य का परिणाम बेहतर ही होता है!

🔴 अंकों का अनावश्यक दवाब ना बनायें, व्यर्थ के तनाव से परीक्षा व परीक्षा फल दोनों पर असर पड़ता है!

🔴 बच्चों को निरन्तर एहसास दिलाएं कि वो आपके लिए सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण हैं!

🔴 नंबरों के कम ज़्यादा होने से कहीं ज़्यादा ज़रूरी आपके बच्चे की मुस्कान है! इसलिए परीक्षा परिणाम को अपनी सामाजिक छवि के साथ जोडय कर  बिल्कुल ना देखें!

🔴 बच्चों के खान पान के साथ साथ उनकी नींद का भी भरपूर ध्यान रखें! नींद का ना पूरा होना अनावश्यक ही कई मानसिक तथा शारीरिक परेशानियों का सबब बनता है!

🔴 बच्चों का मनोबल आपके मनोबल से ही जुड़ा होता है, उन्हें एहसास दिलाएं कि हर परिस्थिति में, आप हमेशा उनके साथ हैं!



रंजना यादव
कानपुर
8765777199