Sunday, December 3, 2017

ध्वनि तरंगों की हूँ मैं संगिनी।

मनोभावों के साथ
संगीत की लय पर
हर बात पड़ती है कहनी
क्योंकि,ध्वनि तरंगों की हूँ मैं संगिनी।

छुपा लेती हूँ हर उदासी
मुस्कुरा कर सुनाती हूँ
हर दर्द की सारी कहानी
क्योंकि,ध्वनि तरंगों की हूँ मैं संगिनी।

घड़ी की सुइयों सी
चलती रहती हूँ निरंतर
फिर भी सांसें पड़ती हैं थामनी
क्योंकि,ध्वनि तरंगों की हूँ मैं संगिनी।

माइक, हैडफ़ोन, स्टूडियो
ये मेरे हैं संगी साथी
इनसे ही है मेरी, पूरी ज़िंदगानी
क्योंकि,ध्वनि तरंगों की हूँ मैं संगिनी।

न नाम की ज़रूरत है
न चेहरे की कोई कीमत
आवाज़ से जाती हूँ पहचानी
क्योंकि,ध्वनि तरंगों की हूँ मैं संगिनी।

2 comments:

  1. मेरी आवाज ही मेरी पहचान है....।
    बहुत सुंदर लिखा । लिखती रहो ।

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